गुरुवार, 15 मार्च 2012

                                                          मगही भाषा आउ साहित्य      

 अभी तक जेतना खोज-बिन होयल हे ओकरा से पता चल हे कि मगही भासा और साहित्य के ई देस मे ढेर दिन से
 बेवहार चलल अवित हे। बहुत पहले हियाँ संस्कृत के बोल बाला हल आऊ ढेर दिन तक रहल।बाकी मध्य काल मे  स्वाभाविक रूप मे अनेक बोली विकसित होवे लगल ओकर नाम प्राकृत  पड़ल। मगह जनपद  मे  जाऊन   प्राकृत  भासा के विकास भेल ओकर नाम मागधी प्राकृत पड़ल।सबसे पहले वररुचि (१) महाराष्ट्री(२) पैशाची (३)मागधी (४) शौरसनी। ई तरह से प्राकृत के चार भाग भेल। बाद मे हेमचंद्र आरसी या अर्ध मागधी आऊ सूलिका पशाचिक के भी प्राकृत मे जोडल गेल। मध्य काल मे संस्कृत के नाटक मे मघाधि के ब्यवहार ढेखल जाहे।बाकी खयाल रखे के चाहि कि संस्कृत नाटक मे जाऊन मघाधि के व्यवहार कायेल  गेल हे उ साहित्य-रूढ़ हे जेकर उ बखत सार्वदेसिक  प्रयोग मिल हे।बाकी स्वछंद रूप से मगध जन पद  मे जाऊन भासा प्राचीन कल मे बढल आऊ फरल-फुलल उ मागधी apbhrans के रूप धारण कयलक उ हमार मघही भासा हे।

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अति प्राचीन मगही भासा के विकास मे सिद्ध लोगन के सबसे जादे योगदान हे । जब बौद्धधर्म मे विकृति आयेल त ओकरा मे से एगो मंत्रायन नाम के साखा बनल । ई साखा मंत्र से सिद्धि प्राप्त करे के उपाय बताव हल साहित्य के
अखड़ विद्वान पंडित राहुल सांकृत्यायन जी एकरा मे चौरासी गो सिद्ध के नाम गिनाव हलन,आऊ साथे एहू बताव
हलन की इनकर साहित्य आऊ प्रचार के भासा मगही हल । एकरा पर डा॰ राम कुमार वर्मा जी के मतानुसार .......
    ईसा के आठवी शताब्दी मे बौद्ध धर्मवालम्बी पाल शासकों ने बंगाल और बिहार पर अपना अधिपत्य स्थापित
कर लिया था।  उन्हों ने बौद्धों के प्रति अपनी संरक्षण शील प्रवृति का परिचय भी दिया । यहाँ तक कि बौद्ध विश्वविद्यालय विक्रम शीला की स्थापना भी उन्हीं के द्वारा हुई । ऐसी स्थिति मे सुदूर दक्षिण मे चलने वाले वज्रयान को भी यहाँ शरण मिली । राज्य संरक्षण प्राप्त कर वज्रयान अपने तंत्र मंत्रवाद के साथ अपने सिद्धांतों का
भी  प्रचार प्रसार पूरी शक्ति के साथ करने लगा वाममार्ग और शक्ति तंत्र का रूप उग्र हो उठा । इसी समय राजा
धर्मपाल के शासन काल (ई॰ 769 -809)मे सिद्ध कवि सरहपा का आविर्भाव हुआ बिहार की जन भाषा मे काव्य रचना करने के कारण सरहपा आदि सिद्ध कवियों की भाषा मगही का पूर्व रूप होना स्वभाविक है।

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