शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

पुराने गानों का रीमिक्स या भोड़ेपन की गायकी

वालीबुड में इनदिनों रिमिक्स का प्रचलन या कहे की भौंडेपन से पुराने गीतों की रीमिक्स का प्रचलन बढ़ा ही नहीं बल्कि बाज़ारों में भी ऐसे विडियो की भरमार है . यहाँ तो ये कहावत बिलकुल मौजूं है की "हरिभजन में आलसी भोजन में होशियार " या यूँ कह ले की "लड़े सिपाही नाम हवलदार के" पुराने संगीतकार हफ़्तों की कड़ी मेहनत से जहाँ गीतों में जान फूकते थे आज रीमिक्स वाले लोग उनके ही जूठन पर पलकर तीस मार खान बने बैठे है .मेहनत से कोसो दूर रहने वाले ये कलाकार कर्पूरी डिविजन के दम पर कहाँ से कर्णप्रिय मधुर संगीत का नव सृजन कर पाएंगे ??? संगीत की एक आत्मा होती है जो सच्चा संगीत साधक ही उसके गहराई को समझ सकता है संगीत का नाद ब्रह्म होता है जो हमारे ज्ञानेन्द्रिया के कण कण में कम्पन करके एक अलोकिक लोक का स्वांग रच देते है पर आजकल के ये रिमिक्सियन फंडे देने वाले लोग न तो संगीत के गहराई के उस स्तर को समझते है और न ही समझने का उपक्रम करते है...आज संगीत के नाम पर जो भी कुछ परोसा जा रहा है उससे भारतीय संगीत का कुछ भी भला होने वाला नहीं. भोजपुरी संगीत के नाम पर आज जो कुछ भी दि-अर्थी बोल बाले गाने बन रहे है वो सचमुच संगीत की अर्थी ही निकाल रहे है.... जहाँ संगीत के नाम पर अश्लील शव्द और अधो वस्त्रो में अपने तन को दिखाती अभिनेत्रियाँ अपने लोल लुभावन भाव भंगिमों से विष कन्या बन हमारे पुरातन संस्कारो को डस रही है .....